गमक किसे कहते है ?

आशा करते है की आप सभी ने पिछले सभी अध्याय पढ़ लिए होंगे। इस अध्याय में हम जानेंगे गमक के बारे में जैसे की गमक किसे कहते है, गमक के कितने प्रकार होते है और बहुत कुछ। इसे समझने के लिए संगीत का आधारभुत ज्ञान बहुत जरुरी है तो अगर आपने अभी तक संगीत के शुरू के अध्याय नहीं पढ़े तो पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करे। चलिए शुरू करते है गमक किसे कहते है ?

गमक किसे कहते है ?

संगीत में गम्भीरतापूर्वक स्वरों के उच्चारण को गमक कहा जाता है। इसकी उत्पत्ति संस्कृत धातु ‘गम’ से हुई है, जिसका अर्थ है – चलना, संगीत की खोज करने वाले सौंदर्य विज्ञानं के विद्वानों ने गमक को सर्वाधिक महत्त्व प्रदान किया है। इनके अनुसार संगीत में सौंदर्य भावुकता, रंजकता और आकर्षण उत्पन्न होने का कारण गमक ही है। जब किसी स्वर को विशिष्ट रूप से हिलाया जाता है तो उसे गमक कहते है। यह गमक ही कण, मींड, सूत, कम्पन आंदोलन की उत्पत्ति का कारण है और इसी से भावो की अभिव्यक्ति होती है। ‘संगीत रत्नाकर’ में गमक की परिभाषा इस प्रकार दी हुई है:

“स्वरस्य कंपो गमकः श्रोतृचित्त सुखावहः ।”

जिसका अर्थ है स्वरों का कम्पन ही गमक कहलाता है जो श्रोतागण के चित्त को सुख व आनंद देता है।

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गमक के कितने प्रकार होते है ?

गमक के मुख्य 15 प्रकार माने गए है जो निम्नलिखित है:

1.) कम्पित 2.) स्फुरित 3.) आहत 4.) आंदोलित 5.) प्लावित 6.) उल्हासित 7.) त्रिभिन्न 8.) तिरिप 9.) वली 10.) हंपित11.) लीन 12.) मुद्रित 13.) करुला 14.) नमित 15.) मिश्रित

1.) कम्पित

मूल स्वर के आगे स्वर को या पूर्व स्वर को जब बार – बार अति शीघ्रता से स्पर्श करते हुए उसका उच्चारण कम्पन द्वारा किया जाता है तो उसे कम्पित गमक का उच्चारण समझा जाता है।

2.) स्फुरित

कम्पित स्वर का बार – बार शीघ्रता से उच्चारण करते समय जब मूल स्वर स्पष्ट रूप से उच्चारित होता है तो उसे स्फुरित कहते है। आधुनिक काल में इसे जमजमा, कण, मुर्की, गिटकरी और कृंतन कहते है।

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3.) आहत

आहत का अर्थ है आघात करना। आधुनिक काल में इसे कण के रूप में जाना जाता है। गमक के इस प्रकार में मूल स्वर को गाते समय हलके से दूसरे स्वर का स्पर्श किया जाता है।

4.) आंदोलित

आंदोलित का अर्थ है झुलाना। स्वर को झूला देने का अर्थ यह है की उसके पूर्व व बाद के स्वर को स्पर्श के सहित उच्चारित किया जाता है। जैसे – ग म ध ध प, ग म रे रे स ।

5.) प्लावित

यह आधुनिक मींड का प्राचीन नाम है। दो मूल स्वरों को जब अत्यंत विनीत भावना से मिलकर गाया या बजाया जाए, तो उसे प्लावित कहते है तथा यह भी कहा जाता है की जब दूसरे शब्दों में एक स्वर एवं दूसरे स्वर को ध्वनि को अलग न करते हुए तो स्वरों का प्रयोग किया जाए तो उसे प्लावित गमक कहते है। यह गमक सितार आदि वाद्यों में मींड के रूप में और सारंगी, बेला इत्यादि वाद्यों में सूत के रूप में प्रयोग होती है।

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6.) उल्हासित

इसमें विरह के भाव व्यक्त होते है। इस प्रकार की गमक में स्वरों को ऊपर से नीचे या नीचे से ऊपर क्रमबद्ध रूप में हिलाते है।

7.) त्रिभिन्न

त्रि का अर्थ है तीन अर्थात तीनो सप्तकों में समान स्वरों का उसी समय उच्चारण किये जाने से इसमें स्वर लहरियो की उत्पत्ति होती है।तार सप्तक: सं रें गं रें सं मध्य सप्तक: स रे ग रे स मंद्र सप्तक: स रे ग़ रे स आजकल इसे पुकार के नाम से जाना जाता है।

8.) तिरिप

इसमें स्वरों का प्रयोग अति शीघ्रता से किया जाता है। यदि किसी स्वर को सम्पूर्ण मात्राकाल में बोलने के स्थान पर अधिक से अधिक स्वरों का उच्चारण किया जाए या वह स्वर जिसका कम्पन 1/8 मात्रा का हो, उसे तिरिप गमक कहते है। यह एक भंवर की तरह होता है।

9.) वली

जब चार स्वरों को इस प्रकार शीघ्रता से गाया या बजाया जाए की उस उच्चारण से अनेक वलय (चक्र) बनते प्रतीत हो तो उसे वली कहते है, जैसे – प ध म प रे ग नि स। इससे धैर्य रूपी भावनाएँ व्यक्त होती है।

10.) हंपित

कुछ संगीत विद्वान् इसे गुम्फित भी कहते है। इसमें छाती में खूब हवा भरकर जोर से स्वर गाया जाता है। इसमें बहुत शक्ति का प्रयोग होता है। इस गमक का प्रयोग ध्रुपद गायकी में अधिकतर किया जाता है।

11.) लीन

जब एक स्वर का कम्पन 1/2 मात्रा की गति से होकर पास के स्वरों में विलीन हो जाता है तो उसे लीन गमक कहते है।

12.) मुद्रित

जब स्वरों का कम्पन मुँह बंद करके किया जाए तब वह मुद्रित गमक कहलाता है।

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13.) करुला

यह अति सूक्ष्म प्रकार का गमक है जो वली गमक के समान है। लेकिन शारंगदेव के अनुसार गले को संकुचित करके स्वरों को गाना ही करुला गमक है।

14.) नमित

नमित का शाब्दिक अर्थ है नमस्कार करना। जब स्वरों का कम्पन नम्रता या कोमलता से किया जाए तो उसे नमित गमक कहते है।

15.) मिश्रित

जब एक से अधिक गमक प्रतिक्रियाओं का मिश्रण हो तो उसे मिश्रित गमक कहते है। इस प्रकार गमक राग के सौंदर्य व स्वरुप को कायम रखने में अत्यंत सहायक है। वास्तव में श्रुतियो के प्रयोग से ही गमक बनता है। सौंदर्य की निष्पत्ति में गमक का बहुत बड़ा योगदान होता है। यदि राग में गमक न हो तो वह निष्प्राण हो जायेगा। इस प्रकार गमक का प्रयोग किसी भी राग विशेष की प्रकृति व चलन के अनुकूल होकर राग अभिव्यंजक सिद्ध होता है।

निष्कर्ष

संगीत की खोज करने वाले सौंदर्य विज्ञानं के विद्वानों ने गमक को सर्वाधिक महत्त्व प्रदान किया है। इनके अनुसार संस्कृत में सौंदर्यता, भावुकता, रंजकता और आकर्षण उत्पन्न होने का कारण गमक ही है। गमक ही कण, मींड, सूत की उत्पत्ति का कारण है। स्वरों का कम्पन ही गमक कहलाता है जो श्रोतागण के चित्त को सुख व आनंद प्रदान करता है।

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