आशा है की आपने पहले के सभी अध्याय पढ़ लिए होंगे। इस अध्याय में हम जानेंगे ग्राम किसे कहते है ? ग्राम संगीत में क्यों जरुरी है। ग्राम किस तरह गायकी में बदलाव लाता है। चलिए शुरू करते है ग्राम किसे कहते है ?
ग्राम किसे कहते है ?
ग्राम ऐसे स्वरों के समूह को कहते है जो का मूच्र्छनाओं का आश्रय है। ग्राम शब्द समूहवाची है। जिस प्रकार परिवार में लोग मिल-जुल कर रहते है, मर्यादा की रक्षा करते है, उसी प्रकार वादी-संवादी स्वरों का वह समूह जिसमे श्रुतिया व्यवस्थित रूप में हो और मूच्र्छना आदि का आश्रय होतो उसे ग्राम कहते है। श्रुति से स्वर और स्वर से ग्राम की रचना हुई है। श्रुतियो की व्यवस्था बदलने से ग्राम भी बदल जाते है।
पकड़, आलाप और तान किसे कहते है ?
ग्राम के कितने प्रकार है ?
संगीत में ग्राम के मुख्य तीन प्रकार माने गए है
1.) षडज ग्राम 2.) मध्यम ग्राम 3.) गांधार ग्राम
‘संगीत पारिजात’ में पंo अहोबल ने लिखा है
” अथ ग्रामस्त्रयः प्रोक्ताः स्वरसन्दोहरुपिणः
षड्ज-मध्यम, गान्धार संज्ञाभिस्ते समन्विता: ।”
1.) षडज ग्राम
षडज ग्राम 22 श्रुतियो पर सप्तक के सात स्वरों की स्थापना से बनता है जो निम्न सिद्धांत पर आधारित है :
” चतुश्चतुश्चतुश्चैव षडज मध्यम पंचमा: द्वै द्वै निषाद गांधारौ, त्रिस्त्री ऋषभ धैवतौ ।”
2.) मध्यम ग्राम
पंचम की एक श्रुति उतार देने से मध्यम ग्राम की उत्पत्ति होती है, जैसे – सत्रहवीं श्रुति में एक श्रुति उतार देने पर अर्थात उसे सोलहवीं श्रुति पर कर देने से मध्यम ग्राम बनता है।
3.) गांधार ग्राम
प्राचीन काल में इसका लोप होने लगा। इसी कारण इसकी स्पष्ट व्याख्या नहीं मिलती। कुछ लोग कहते है की प्राचीनकाल में जो निषाद ग्राम प्रचलित था उसे गांधर्व लोगो द्वारा अपनाने के कारण इसका नाम गांधार ग्राम पड़ा। आधुनिक काल में इसका प्रचार बिल्कुल नहीं है।
ग्राम गाया या बजाया नहीं जाता। इससे मूचर्छना जाति अथवा राग की उत्पत्ति होती है।
निष्कर्ष
श्रुति से स्वर और स्वर से ग्राम की रचना हुई है। रागो की उत्पत्ति का मुख्य स्त्रोत ग्राम माना जाता है। मुख्यतः ग्राम तीन प्रकार के होते है, जिनमे श्रुतियो की व्यवस्था अलग-अलग होती है ग्राम का मुख्य उद्देश्य स्वरों, श्रुतियो, तान, जाति, राग और मूचर्छना आदि का सुव्यवस्थित रूप प्रस्तुत करना है।