आशा है की आपने पहले के सभी अध्याय पढ़ लिए होंगे। इस अध्याय में हम जानेंगे राग में प्रयोग होने वाले पकड़, आलाप और तान के बारे में, जैसे की पकड़, आलाप और तान किसे कहते है ? इसका राग में क्या महत्व है ये तीनो हमारी आवाज़ में किस तरह का बदलाव लाते है और भी बहुत कुछ। चलिए शुरू करते है पकड़, आलाप और तान किसे कहते है ?
पकड़ किसे कहते है ?
छोटे से छोटा वह स्वर-समुदाय जिससे किसी एक राग का बोध हो, पकड़ कहलाती है, जैसे – ग म रे स, ग प ध नी ध प से राग अल्हैया बिलावल का बोध होता है।
आलाप किसे कहते है ?
स्वरों को विस्तारपूर्वक गाने व बजाने को आलाप कहते है। आलाप राग का सम्पूर्ण दर्शन कराता है। आलाप आवश्यकता अनुसार मींड, गमक, खटका आदि का प्रयोग कर सुखद एवं आनंददायक बनाया जाता है। आलाप मुख्यतः नोम-तोम तथा आकार की आवाज़ में किया जाता है। यह गीत के पूर्व अथवा गाने या बजाने के क्रम में किया जाता है। बड़ा ख्याल आलाप प्रधान होता है जबकि छोटा ख्याल कुछ छोटे आलापों से सुसज्जित किया जाता है।
राग में कितने प्रकार के स्वर होते है ?
तान किसे कहते है ?
स्वरों को द्रुत गति से गाने व बजाने को तान कहते है। इसकी जाती दुगुन, तिगुन, चौगुन और अठगुन की भी हो सकती है। इसके कई प्रकार हो सकते है- आलंकारिक तान, सरल तान, सपाट तान, कूट तान आदि। जब तान करने में गाने के शब्दों का प्रयोग करते है तो उसे ‘बोल तान’ कहा जाता है।
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