आशा करते है आपने अभी तक के सभी अध्याय पढ़ लिए है ताकि आपको किसी भी भाग को समझने में कोई परेशानी ना हो। हमने राग किसे कहते है ? रागो की उत्पत्ति कैसे हुई ? इसकी विस्तृत जानकारी दूसरे अध्याय में दी है आप यहाँ क्लिक करके पढ़ सकते है। चलिए शुरू करते है राग परिचय का अध्याय 1 – राग अल्हैया बिलावल
राग अल्हैया बिलावल
” थाट बिलावल प्रथम दिवस, उतरत दोऊ निषाद ।
आरोहन मध्यम तजि कर, मानत ध-ग सम्वाद ।।”
थाट | बिलावल |
वादी स्वर | ध (धैवत) |
संवादी स्वर | ग (गांधार) |
जाति | षाडव-सम्पूर्ण |
गायन समय | दिन का प्रथम पहर |
विशेषताएँ:-
- यह राग अल्हैया बिलावल, बिलावल का एक प्रकार है।
- इस राग में ‘रे’, ‘ग’ और ‘नि’ स्वर का वक्र रूप प्रयोग होता है, जैसे – म ग म रे, ग रे ग प, ग प नी ध नी।
- अवरोह में ‘नी’ स्वर शुद्ध तथा ‘नी’ कोमल स्वर के रूप में प्रयोग होता है, जैसे – ग प ध नी, ध प, सं नी ध प।
- यह राग उत्तरांग प्रधान राग है इसलिए इसका चलन सप्तक के उत्तर अंग में अधिक होता है।
- इस राग का प्रचार इतना अधिक बढ़ गया है की बिलावल कहने से लोग इसे अल्हैया बिलावल ही समझते है, जबकि ये दोनों राग अलग अस्तित्व रखते है।
आरोह : स ग, रे ग प, ध नी सं।
पकड़ : ग रे, ग प, म ग म रे, ग प ध नी ध प।
अवरोह : सं नी ध प, (ध नी ध)प, म ग रे स।
राग किसे कहते है ? राग की उत्पत्ति कैसे हुई ?
आलाप
- स ग, रे ग प, म ग म रे स।
- नी स ग रे ग प, ग प ध नी ध प, ग म प ग म रे स।
- ग रे – ग प, ग प ध नी सं – रें सं – सं, गं मं रें गं नी सं, सं रें नी सं – ध – नी – ध प, म ग रे ग प – म ग म रे स।
तानें
1.) नी स ग रे ग प म ग ध नी ध प म ग रे स।
2.) स ग रे ग प म ग रे ग प म ग म रे स – ।
3.) ग प ध नी सं नी ध प ग म प ग म रे स – ।
4.) नी सं गं गं रें सं रें रें सं नी ध प म ग रे स ।
5.) ग ग रे ग प म ग रे, ग प ध नी ध प म ग, ग प ध नी सं नी सं सं, ध नी ध प ग प म ग, रे ग प म ग रे स स, सं नी ध नी ध प म ग, रे ग प म ग रे स स ।
6.) ग प ग प ग प म ग, रे ग रे ग प म ग रे, स ग रे ग प ध नी सं, सं नी ध प ध नी ध प, म ग म रे स रे स स ।
राग अल्हैया बिलावल – स्वरमालिका – तीन ताल
स्थायी


अंतरा


राग अल्हैया बिलावल – लक्षणगीत – तीन ताल
स्थायी


अंतरा


राग अल्हैया बिलावल – छोटा ख्याल – तीन ताल
स्थायी – भज ले रे हरि नाम मोरे मना,
सुमिरन कर वाको रैन दिना।
अंतरा – जे ही कीने जाप बिनसाये ताप,
रट वाको नाम रसना।
स्थायी


अंतरा


राग अल्हैया बिलावल – छोटा ख्याल – तीन ताल
स्थायी – जाग उठे सब जन तुम जागो, गौवन के चरवाल चरैया।
अंतरा – ग्वाल बाल सब गईया चरावत, तुमरे कारन आवत धावत,
सदारंग मन तुमसों लागो।
स्थायी


अंतरा




राग अल्हैया बिलावल – छोटा ख्याल – तीन ताल
स्थायी – मनहरवा रे मैंका हरी-हरी चुरियाँ दे हो मँगाए,
रंग-रंगीली और चटकीली, ता पर घन कटकीली।
अंतरा – और गले का हार लूँगी, मोतियन थाल भरूँगी,
खरक-खरक मोरी चुरियाँ खरके, बंगुरी मुरक गईली।
स्थायी


अंतरा


राग में कितने प्रकार के स्वर होते है ?
राग अल्हैया बिलावल – छोटा ख्याल – तीन ताल
स्थायी – बलि-बलि जाऊँ मधुर सुर गावो
अब के बेर मेरे कुँवर-कन्हैया नंद ही नाच दिखावो।
अंतरा – तारी दे दे अपने कर की, परम प्रीत उपजावो
आन जौंत धुन सुनत, तरपत कत मो भुज कंठ लगावो।


अंतरा


राग अल्हैया बिलावल – द्रुत ख्याल – तीन ताल
स्थायी – मोरी अरज सुनो गिरधारी आज
तुम दीन दुखी के सरताज।
अंतरा – आई हूँ मैं शरण तिहारी,
किरपा करो महाराज।
स्थायी


अंतरा


Thanks For Reading – पढ़ने के लिए धन्यवाद
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