राग में कितने प्रकार के स्वर होते है ?

आशा करते है आपने पहले के सभी अध्ययन पढ़ लिए होंगे। इस अध्याय में हम आपको राग में उपयोग किये जाने वाले अलग – अलग स्वरों के बारे में बताएँगे। इसे समझने के लिए आपको संगीत का आधारभूत ज्ञान होना आवश्यक है इसीलिए अगर आपने पहले के अध्याय नहीं पढ़े है तो पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें। रागो में बहुत से स्वरों का प्रयोग किया जाता है जिसका पता होना बहुत जरुरी है। शुरू करते है राग में कितने प्रकार के स्वर होते है ?

राग में कितने प्रकार के स्वर होते है ?

किसी भी राग में मुख्य रूप से स्वरों को छः भागो में बाँटा जाता है। नीचे सबका वर्णन किया गया है।

1.) वादी स्वर 2.) सम्वादी स्वर 3.) अनुवादी स्वर 4.) विवादी स्वर 5.) वर्ज्य (वर्जित)स्वर 6.) कण स्वर

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1.) वादी स्वर किसे कहते है ?

राग में लगने वाला सबसे महत्वपूर्ण स्वर को वादी स्वर कहते है अर्थात राग के अन्य स्वरों की अपेक्षा जिस स्वर पर अधिक ठहरा जाता है तथा जिसका प्रयोग बार – बार किया जाता है वह उस राग का वादी स्वर कहलाता है। वादी स्वर को राग रूपी राज्य का ‘राजा स्वर’ कहा जाता है। वादी स्वर को अंश अथवा प्रधान स्वर भी कहते है।

वादी स्वर से राग का गायन समय भी निश्चित होता है। किन्ही दो रागो में स्वरों की समानता होते हुए भी केवल वादी स्वर के परिवर्तन से दोनों राग एक दूसरे से अलग हो जाते है, जैसे – राग भूपाली और देशकार। दोनों रागो में स रे ग प ध स्वरों का प्रयोग होता है, लेकिन भूपाली का वादी स्वर ‘ग’ होने से तथा देशकार का वादी स्वर ‘ध’ होने से दोनों राग अलग हो जाते है।

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2.) सम्वादी स्वर किसे कहते है ?

राग का द्वितीय महत्वपूर्ण स्वर सम्वादी स्वर कहलाता है। इसका प्रयोग वादी स्वर से कम तथा अन्य स्वरों से अधिक होता है। इसे वादी रूपी राजा का मंत्री कहा जाता है। वादी तथा सम्वादी स्वरों में चार अथवा पाँच स्वरों की दूरी होती है। यदि राग का वादी स्वर ‘ग’ होता है तो उसका सम्वादी स्वर ‘नी’ होता है।

3.) अनुवादी स्वर किसे कहते है ?

वादी-सम्वादी स्वरों के अतिरिक्त राग में लगने वाले स्वरों को अनुवादी स्वर कहते है। जैसे राग अल्हैया बिलावल में वादी स्वर ‘ध’ तथा सम्वादी स्वर ‘ग’ है। इसके अतिरिक्त लगने वाले स्वरों, जैसे – स रे म प नी स्वरों को अनुवादी स्वर कहा जाएगा।

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4.) विवादी स्वर किसे कहते है ?

जो स्वर राग में नियमानुसार नहीं लगना चाहिए लेकिन कभी-कभी राग की सौंदर्य वृद्धि के लिए प्रयोग किया जाता है, उसे विवादी स्वर कहते है। इस स्वर का प्रयोग कुशल गायक या वादक ही कर सकता है क्योकि इस स्वर का प्रयोग करते समय सावधानी बरतनी पड़ती है ताकि राग का स्वरुप न बिगड़े। जैसी राग भैरवी में ‘रे’ शुद्ध का प्रयोग विवादी स्वर की तरह इस प्रकार किया जाता है की केवल राग की सौंदर्य वृद्धि हो। जैसे – सं गं रें गं सं रें सं

5.) वर्ज्य (वर्जित) स्वर किसे कहते है ?

वह स्वर जो राग के नियमानुसार थोड़े प्रयोग से भी राग का स्वरुप बिगड़ दे, वर्ज्य स्वर कहलाता है। विवादी और वर्जित स्वरों में मुख्य अंतर यही है की विवादी स्वर का प्रयोग राग की सुंदरता बढ़ने के लिए कभी-कभी कर लिया जाता है किन्तु वर्जित स्वर के थोड़े प्रयोग से भी राग बिगड़ जाता है।

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6.) कण स्वर किसे कहते है ?

आलंकारिक स्वर के अल्प व्यव्हार को कण कहा जाता है। किसी भी एक प्रधान स्वर को उसके पूर्ववर्ती अथवा परवर्ती स्वर के कुछ व्यव्हार (स्पर्श) द्वारा अलंकृत करने पर वही पूर्ववर्ती एवं परवर्ती स्वर का कण वयवहार हुआ बोला जाता है।

कण एक आलंकारिक स्वर है जिसका उद्देश्य संगीत की रचनाओं को सजाना और सवारना है। मूल स्वर के साथ जो स्वर थोड़ा-सा स्पर्श हो जाये उसे कण स्वर कहते है। यह स्वर मूल स्वर के आगे का अथवा एक पीछे का स्वर होता है। कण स्वर मूल स्वर से दूर भी हो सकता है। कण स्वर मूल स्वर से जितना दूर होगा, उतना ही उसका लगाव कठिन होगा। यदि मूल स्वर और कण स्वर की दुरी अधिक होगी तो कण और मींड में अंतर करना कठिन हो जायेगा। भातखण्डे स्वरलिपि पद्धति में कण इस प्रकार लिखते है:

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