आशा करते है, आप सभी को पता है की संगीत क्या है और कहा से आया | अगर आपको संगीत क्या है कहा से आया नहीं पता तो यहाँ क्लिक करके पढ़ सकते है | आज की इस ब्लॉग में आपको संगीत के प्रकार के बारे में बताया जायेगा | हम सबने बचपन से ही बहुत सी चीज़ो के बारे में पढ़ा है और आमतौर पे सभी के अलग – अलग प्रकार होते है | उसी तरह संगीत भी बहुत से हिस्सों में बटा हुआ है | संगीत शब्द छोटा सा जरूर है परन्तु संगीत वास्तव में बहुत बड़ा है | संगीत इतनी बड़ी कला है की एक व्यक्ति अपने मृत्यु तक भी पुरे संगीत को नहीं सिख सकता | इस ब्लॉग में जितने भी संगीत के भाग बताये जायेंगे वो सिर्फ भारतीय शास्त्रीय संगीत के अनुसार बताये जायेंगे तो चलिए शुरू करते है – संगीत के कितने प्रकार है ?
संगीत के कितने रूप है ?
संगीत के दो रूप बताये गए है 1.) क्रियात्मक संगीत 2.) शास्त्र संगीत
1.) क्रियात्मक संगीत
संगीत के इस रूप में राग, आलाप-तान, गात के प्रकार, गायकी, ध्वनि का उतार – चढ़ाव, वादन और नृत्य के प्रकार आते है | किसी भी कला का मुख्य उद्देश्य उसकी अभिव्यक्ति प्रकट करना है और विशेषकर संगीत जैसी कला का प्रत्यक्ष रूप में ही व्यवहार होता है | इसीलिए भारतीय संगीत में गायन और वादन का क्षेत्र बड़ा होने के कारण क्रियात्मक पक्ष बहुत जरुरी है |
क्रियात्मक संगीत का सीधा मतलब गायन और वादन से है | जैसे किसी भी चीज़ का अध्ययन करते समय उसके सिद्धांत के साथ उसका व्यावहारिक ज्ञान जरुरी होता है उसी तरह संगीत के व्यावहारिक ज्ञान को क्रियात्मक संगीत के रूप से जाना जाता है |
2.) शास्त्र संगीत
शास्त्र संगीत में संगीत का लिखित रूप आता है और यह नियमो से बंधा हुआ होता है | इसके अंतर्गत सभी परिभाषा, रागो का परिचय, स्वरलिपि, तान – आलाप, रागो की तुलना और शास्त्र संगीत का पूरा ज्ञान होता है | शास्त्र संगीत में संगीत के पारिभाषिक शब्द, संगीत का इसिहास और संगीतज्ञों का परिचय सम्बन्धी अध्ययन होता है |
शास्त्र संगीत का सीधा मतलब गायन और वादन के नियमो का अध्ययन से होता है | जिस प्रकार किसी भी काम को करने के लिए उसकी जानकारी लेना बहुत जरुरी है उसी तरह गायन और वादन के लिए जिन नियमो का अध्ययन करना होता है वो शास्त्र संगीत के अंतर्गत आते है |
संगीत के कितने प्रकार होते है ?
मुख्य रूप से संगीत के दो प्रकार होते है 1.) शास्त्रीय संगीत 2.) भाव संगीत
1.) शास्त्रीय संगीत
जिस संगीत को निर्धारित नियमो के अनुसार गाया या बजाया जाता है उसे शास्त्रीय संगीत कहते है | शास्त्रीय संगीत के इस प्रकार में राग, स्वर, ताल, लय आदि नियमो का पालन करते हुए गायन और वादन को प्रस्तुत किया जाता है | इसके अंतर्गत ख्याल गायन, ध्रुपद, धमार इत्यादि आते है |
2.) भाव संगीत
संगीत के इस प्रकार में शास्त्रीय संगीत के समान कोई बंधन नहीं होता | इस संगीत का मुख्य उद्देश्य लोगो का मनोरंजन करना होता है | इस प्रकार के संगीत में शब्द और भाव की प्रधानता होती है | भाव प्रधान होने के कारण ही इसे भाव संगीत कहते है | इसके अंतर्गत भजन, गीत, लोकगीत, चित्रपट संगीत, विशेष उत्सवों पे गाये जाने वाले गीत आदि आते है |
नोट :- गायन और वादन के लिए शास्त्रीय संगीत की आवश्यकता होती है इसीलिए आगे शास्त्रीय संगीत के बारे में बताया जायेगा |
संगीत की कितनी पद्धतिया है ?
भारत में संगीत की मुख्य दो पद्धतिया है:-
1.) उत्तरी अथवा हिंदुस्तानी संगीत पद्धति2.) दक्षिणी अथवा कर्नाटकी संगीत पद्धति
1.) उत्तरी अथवा हिंदुस्तानी संगीत पद्धति
भारत के अधिकांश भाग में इसी पद्धति का उपयोग होता है | यह पद्धति बंगाल, बिहार, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, गुजरात, जम्मू-कश्मीर तथा महाराष्ट्र प्रांतो में प्रचलित है |
2.) दक्षिणी अथवा कर्नाटकी संगीत पद्धति
यह पद्धति तमिलनाडु, मैसूर, आँध्रप्रदेश में ही अधिकतर प्रचलित है |
भारत में प्रचलित दोनों पद्धतिया दोनों एक दूसरे से पूरी तरह अलग है | दोनों संगीत पद्धतिया अलग होने के बावजूद इसमें बहुत समानताएँ है | दोनों संगीत पद्धतिया में एक सप्तक में 22 श्रुतिया और 12 स्वर होते है | दोनों संगीत पद्धतियाँ थाट-राग सिद्धांत को मानती है, परन्तु दोनों पद्धतियों के स्वरों के नाम, रागो के नाम, थाटों की संख्या, ताले और गायन प्रणाली में बहुत अंतर है |
पढ़ने के लिए धन्यवाद् – Thanks For Reading
अगर आपको यह जानकारी उपयोगी लगी होतो संगीत में रूचि रखने वाले मित्रो तक ये जानकारी जरूर साँझा करे | अगले ब्लॉग में आपको श्रुतिया और स्वरों के बारे में बताया जायेगा | संगीत से जुडी किसी भी जानकारी को हिंदी में जानने के लिए निचे कमेंट कर सकते है | सभी प्रशनो का उत्तर जल्द से जल्द दिया जायेगा |