स्वर किसे कहते है ?

आशा करते है आपने पिछले ब्लॉग पढ़ लिए होंगे | जिनमे संगीत क्या है कहा से आया उसके बारे में सारी जानकारी दी गयी है | आज के इस ब्लॉग में स्वर के बारे में बताया जायेगा, स्वर किसे कहते है ? स्वर कितने होते है ? और स्वरों को कैसे बनाया गया ? हम सभी को पता है की संगीत सिखने के लिए सुर और ताल का ज्ञान होना बहुत जरुरी है | इसीलिए स्वर (सुर) के बारे में सारी जानकारी होना बहुत आवश्यक है | तो चलिए शुरू करते है – स्वर किसे कहते है ?

स्वरों की रचना से पहले लोग श्रुतियो की सहायता से संगीत सीखते थे | सबसे पहले हम श्रुतियो के बारे में बताएँगे जैसे की श्रुतिया क्या होती है और अब संगीत सिखने के लिए श्रुतियो का प्रयोग क्यों नहीं किया जाता ?

श्रुति क्या होती है ?

श्रुति एक ध्वनि या नाद है जो गीत में उपयोग की जा सके और एक – दूसरे से अलग और स्पष्ट सुनी जा सके, उसे श्रुति कहते है | सामान्य शब्दों में जो कुछ भी स्पष्ट सुनाई दे वह श्रुति है | संगीतज्ञों ने प्राचीन समय में मधुर नादो में से कुछ ध्वनिया चुनी जो एक – दूसरे से उचाई पर थी और जिनकी संख्या 22 थी | यह 22 श्रुतिया प्राचीन समय में गायन – वादन के लिए उपयोग की जाती थी परन्तु इन 22 नादो पे गायन – वादन में कठिनाई को देखते हुए इनमे से 12 श्रुतिया चुन ली गयी और इन्ही 12 श्रुतियो पे गायन – वादन किया जाने लगा |

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स्वर किसे कहते है ?

दुनिया में अनेको नादो में से कुछ श्रुतिया चुनना जिसपे गायन और वादन किया जा सके, बहुत मुश्किल था | 22 श्रुतियो को स्वरों में विभाजित करने के लिए शास्त्रकारों ने इनमे से कुछ अंतर पे सात श्रुतिया चुनी और उन्हें ‘स्वर’ की संज्ञा दी | इस प्रकार श्रुति और स्वर वास्तव में दो अलग नाम होते हुए भी एक ही है |

22 श्रुतियो का विभाजन

यह 22 श्रुतिया 7 स्वरों में इस प्रकार विभाजित है:- स, म, और प की चार-चार, रे, ध में तीन-तीन, ग, नी में दो-दो श्रुतियो का अंतर होता है | पंडित शारंगदेव ने अपने ग्रन्थ ‘संगीत रत्नाकर’ में इस विभाजन की पुष्टि करी है | प्राचीन ग्रंथकार शुद्ध स्वरों को उनकी अंतिम श्रुतियो पर स्थापित करते थे, परन्तु आधुनिक ग्रंथकार शुद्ध स्वरों को उनकी पहली श्रुति पर स्थापित करते है |

प्राचीन स्वर विभाजन

प्राचीन स्वर विभाजन

आधुनिक स्वर विभाजन

आधुनिक स्वर विभाजन

स्वर के प्रकार

स्वर मुख्य रूप से दो प्रकार के होते है :-

स्वर के प्रकार

1.) शुद्ध स्वर (Natural Notes)

जब स्वर अपने निश्चित स्थान पर होते है, वे शुद्ध अथवा प्राकृत स्वर कहलाते है | इनकी संख्या सात होती है और इनके नाम इस प्रकार है :-

स – षडज रे – ऋषभ ग – गांधार म – मध्यम प – पंचम ध – धैवत नी – निषाद

2.) विकृत स्वर (Vikrit Notes)

जब स्वर अपनी निश्चित अवस्था से नीचे या ऊपर गाये या बजाये जाते है उन्हें विकृत स्वर कहते है | इनके नाम इस प्रकार है : रे, ग, म, ध, नी |

विकृत स्वर दो प्रकार के होते है 1.) कोमल विकृत (Minor Notes) 2.) तीव्र विकृत (Major Notes)

1.) कोमल विकृत (Minor Notes)

जब कोई स्वर शुद्ध अवस्था से नीचे होकर गया या बजाया जाता है तो उसे कोमल विकृत कहते है | कोमल विकृत की संख्या 4 होती है तथा इसे लिखने के लिए स्वर के नीचे लेटी रेखा का प्रयोग किया जाता है जैसे – रे नी

2.) तीव्र विकृत (Major Notes)

जब कोई स्वर शुद्ध अवस्था से ऊपर होकर गाया या बजाया जाता है उसे तीव्र विकृत स्वर कहते है | इसकी संख्या 1 है तथा इसे लिखने के लिए स्वर के ऊपर कड़ी रेखा का प्रयोग किया जाता है |

इस प्रकार कुल 12 स्वर होते है जिसमे 7 शुद्ध स्वर और 5 विकृत स्वर होते है | जो स्वर अपनी निश्चित अवस्था में सदैव अटल रहते है उन्हें अचल स्वर कहते है | यह स्वर केवल दो है – स और प |

श्रुति और स्वर में अंतर

श्रुति

  • श्रुतिया 22 है |
  • श्रुतियो का परस्पर फासला कम है |
  • कण मींड और सूत द्वारा जिस सुरीली ध्वनि को व्यक्त किया जाये वह श्रुति है |
  • प्रत्येक श्रुति स्वर नहीं है |
  • श्रुति के उत्पन्न होने में अधिक आंदोलन की आवश्यकता नहीं होती है |
  • श्रुति की तुलना सांप की कुंडली से की जाती है | गायन-वादन में जब तक इसका प्रयोग नहीं होता तब तक यह सोई रहती है |

स्वर

  • स्वर 12 है |
  • स्वर का फासला श्रुति की अपेक्षा ज्यादा है |
  • कण मींड और सूत द्वारा सुरीली ध्वनि और ठहराव हो वह स्वर है |
  • प्रत्येक स्वर श्रुति है |
  • स्वर उत्पत्ति के लिए अधिक आंदोलन की आवश्यकता होती है |
  • प्रत्येक स्वर की तुलना सांप से की गयी है | गायन-वादन में जब इसका प्रयोग होता है तब स्वर सांप के रेंगने की भांति क्रियाशील हो जाता है |

पढ़ने के लिए धन्यवाद् – Thanks For Reading

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